
डॉ.सम्पत अग्रवाल के प्रतिनिधि करमडार महापुजन एवं कर्मा नृत्य महोत्सव में हुए शामिल, पुजा-अर्चना कर अंचलवासियों की खुशहाली की कामना की।
बसना. करमडार महापुजन एवं कर्मा नृत्य महोत्सव हमारे छत्तीसगढ़ के पर्वों में से एक प्रमुख पर्व है जिसे भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष के एकादशी को मनाया जाता है,आज बसना अंचल के ग्राम पोटापारा में लोक संस्कृति के इस पावन पर्व करमडार महापुजन एवं कर्मा नृत्य महोत्सव का आयोजन किया गया, जिसमें ग्रामवासियों के साथ क्षेत्र के कर्मा कथा वाचक, लोक संस्कृति एवं लोक गीत के गायक एवं स्त्री-पुरुष, युवक-युवतियों ने पुजा-अर्चना कर नृत्य किये।
इस पावन अवसर नीलांचल सेवा समिति के संस्थापक एवं नगर पंचायत पूर्व अध्यक्ष डॉ.सम्पत अग्रवाल के प्रतिनिधिमण्डल शामिल हुए तथा पुजा-अर्चना कर कर अंचलवासियों की खुशहाली की कामना की। तत्पश्चात ग्रामवासियों ने प्रतिनिधिमंडल का पुष्पहार से स्वागत सम्मान किया।
कर्मा नृत्य में मांदर और झांझ-मंजीरा प्रमुख वाद्ययंत्र हैं। इसके अलावा टिमकी ढोल, मोहरी आदि का भी प्रयोग होता है। कर्मा नर्तक मयूर पंख का झाल पहनता है, पगड़ी में मयूर पंख के कांड़ी का झालदार कलगी खोंसता है। रुपया, सुताइल, बहुंटा ओर करधनी जैसे आभूषण पहनता है। कलई में चूरा, और बाँह में बहुटा पहने हुए युवक की कलाइयों और कोहनियों का झूल नृत्य की लय में बड़ा सुन्दर लगता है। इस नृत्य में संगीत योजनाबद्ध होती है। राग के अनुरूप ही इस नृत्य की शैलियाँ बदलती है। इसमें गीता के टेक, समूह गान के रूप में पदांत में गूँजते रहता है। पदों में ईश्वर की स्तुति से लेकर श्रृंगार परक गीत होते हैं। मांदर और झांझ की लय-ताल पर नर्तक लचक-लचक कर भाँवर लगाते, हिलते-डुलते, झुकते-उठते हुये गोलाकार नृत्य करते हैं।
कर्मा की मनौती मानने वाला दिन भर उपवास रखता है और अपने सगे-सम्बंधियों और पड़ोसियों को न्योता देता है। शाम के समय कर्मा वृक्ष की पूजा कर टँगिये के एक ही वार से डाली को काटा जाता है, उसे ज़मीन में गिरने नहीं दिया जाता। उस डाली को अखरा में गाड़कर स्त्री-पुरुष, युवक-युवती रात भर नृत्य करते हैं और सुबह उसे जल में विसर्जित कर देते हैं।
इस मौके पर नगर पंचायत अध्यक्ष गजेंद्र साहू, बसना सेक्टर सह प्रभारी आकाश सिन्हा, नीलांचल जनसंपर्क टीम से विजय पटेल, दीपक जगत,उद्धव पटेल सहित बड़ी संख्या में ग्रामवासी एवं क्षेत्रवासी उपस्थित रहे।