
पोला पर्व : 2022 पोला पर्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में कृषि संस्कृति से गहराई से जुड़ा : डॉ.सम्पत अग्रवाल
बसना । छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार पाेला समस्त प्रदेशवासियों एवं अंचलवासियों ने हर्षोल्लास के साथ मनाया । सुबह घर-घर में मिट्टी से बने बैल व खिलौनों की पूजा हुई। फिर बच्चे बड़े उत्साह से उससे खेलते नजर आए। बता दें कि पोल पर्व मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है।
कहा जाता है कि इसी दिन धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है। इसलिए यह त्योहार भादो अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन लोगों को खेत पर जाने की मनाही होती है। पोला पर्व महिलाओं, पुरुषों और बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। बच्चे मिट्टी से बने खिलौने, बैल को मजे के साथ खेलते है। पुरुष अपने पशुधन को सजाते हैं और पूजा करते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं।
नीलांचल सेवा समिति के संस्थापक एवं नगर पंचायत पूर्व अध्यक्ष डॉ.सम्पत अग्रवाल ने अपने शुभकामना संदेश में कहा है कि पोला का यह पर्व छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में कृषि संस्कृति से गहराई से जुड़ा है। कृषि कार्य एवं श्रम पर आधारित यह पर्व हम सभी के लिए अच्छी फसल की कामना का संदेश लेकर आता है। इस अवसर पर उन्होंने क्षेत्र के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की है।
उन्होंने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ का पोला त्यौहार मूल रूप से खेती-किसानी से जुड़ा पर्व है। सांस्कृतिक विरासत और परम्परा रही है, कि हम खेती में सहायता के लिए पशुधन का आभार व्यक्त करते हैं। इस दिन हम घर में कई प्रकार के पकवान बनाकर बैलों और जाता-पोरा की पूजा करते हैं और अन्न्, जन, धन से घर भरा होने की प्रार्थना करते हैं। घरों में प्रतिमान स्वरूप मिट्टी के बैलों और बर्तनों की पूजा की जाती है, जिसे बच्चों को खेलने के लिए दिया जाता है।